'चाँद -सी महबूबा हो मेरी' - 'चाँद -सी महबूबा हो मेरी' -
एक ख्वाहिश एक ख्वाहिश
पानी की धार में पर कट गऐ सूरज की गर्मी से हौसले जल गऐ। आज वो परिन्दा पिँजरे में है आज भी आशियाँ... पानी की धार में पर कट गऐ सूरज की गर्मी से हौसले जल गऐ। आज वो परिन्दा पिँजरे ...
कि उसे मैंने पहाड़ और पहाड़ को अपना महबूब कर दिया“ कि उसे मैंने पहाड़ और पहाड़ को अपना महबूब कर दिया“
पर बूंद बूंद से ही बदलेगी इन मासूमों की परिस्थिति। पर बूंद बूंद से ही बदलेगी इन मासूमों की परिस्थिति।